Mirage

Life ~ Mirage
~ A wasted illusion right from the start.
~ Hopeless romanticism of a hopeful heart.

Though the former is reality, I choose to live by the latter.

Wednesday, September 3, 2014

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद (गुप्ताजी)



"नहीं, हम नहीं चखेंगे इसको,
या तो बिलकुल मीठा दीजिये
या एकदम खट्टा"
 गुप्ताजी
अकड़ कर बोले,
"इस पार या उस पार,
ये बीच बाच की चीज़ें
हमें  रास नहीं आतीं "

नए  नए चमकते हुए
ताम्बे के गिलास में परोसी गयी थी
खट्टी मीठी
शिकंजी
अरे गुप्ताजी,
दिल रखने के लिए ही चख लेते …

पर नहीं, अपनी ही अकड़ में
छोटे से नज़रिये से
किताबों में पढ़कर
स्वाद को परखने चले थे ...
नासमझी तो देखिये इनकी
अरे गुप्ताजी,
दिल रखने के लिए ही चख लेते …

कभी कभी  सोचते ज़रूर थे मगर
कि जाने क्या देखते हैं लोग इसमें
आढ़े टेढ़े, ऊपर नीचे
हर तरफ से सोचने के बाद भी
ये स्वाद का चक्कर उनकी समझ से बाहर था
अरे गुप्ताजी
दिल रखने के लिए ही चख लेते …

"ठीक है फिर, मत लीजिये
यहीं रख रहे हैं मेज़ पर
पर अब किसी और को दे देंगे
आप मत लीजिये अब"
तब जाके एहसास हुआ
गुप्ताजी को
कि शायद बेहतर होता जो
दिल रखने के लिए ही चख लेते …

पर अब अकड़ और बढ़ गयी है ना
तो वहीँ बैठे हैं
गुप्ताजी
ताक रहे हैं मेज़ पर
हाथ में अखबार है
पर नज़र उसी ताम्बे के गिलास पर
शिकंजी

चाहते तो हैं
पर हालत कुछ ऐसी है
ना मांगते बनता है
ना मना करते

;)