यादों की धूप
#4
दिल्ली की सर्दी में
घर की छत पर चटाई फैलाकर
धूप सेकना याद आता है
बस अब बाट देख रहे हैं
गुप्ताजी
उन्ही आलस भरी छुट्टियों की
क्योंकि बहन से लड़ाई
और माँ के हाथ के गाजर हलवे बिना
रहा ही कहाँ जाता है
गुप्ता जी, आज खुश हैं
#3
गर्म चाय और कड़क बिस्कुट लिए
बरामदे की ठंडी हवा में खड़े
बंद आँखों से मंद मंद मुस्कुराते
गुप्ता जी
पुरानी यादों के बीच कहीं खोए हुए हैं
छोड़ो कल की बातें
इस दौड़ से ज़रा परे हट कर
वो आज, यहाँ, इस लम्हे के होए हुए हैं
गुप्ता जी, ज़रा सुनो तो
#2
अटैची लेकर घर से दफ्तर तक
पीढ़ी दर पीढ़ी वही Road न लो
नया चुनो कोई रस्ता लेकिन
नहीं मज़ा उस रस्ते में तो
Light लो, पर Load न लो |
नए दौर के Version ३ में
Version १ का Source code न लो
मिल भी गया तो Antique समझ लो
तोड़ मरोड़ के नया बनालो
Black में बेचो, Load न लो |
गुप्ता जी, ज़रा सुनिए
#1
बहुत भाग लिए ज़िन्दगी के पीछे गुप्ता जी,
सुनो अगर जो कान लगा कर, वक़्त कहने लगा है
अब चला जाए तेज़ इतना कि ज़िन्दगी को भगाएं
या रुक जाएँ, थम जाएँ ऐसे कि ज़िन्दगी खुद ब खुद
खींच कर ले जाए आगे, अपने साथ।
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