काम के बोझ तले, रोज़मर्रा की दौड़ में
वक्त यूँ ही निकल जाता है
पर अगर माँ से न हो दो पल बात,
दोस्तोँ के साथ न हो कुछ देर मुलाकात,
तो दिन नहीं बन पाता है
दिमाग ही सोचता सिर्फ तो क्या था गम
जाने क्योँ दिल बीच में आ जाता है
कभी तो भरी भीड़ में खोये, डरती हूँ
पर स्थिर कदम नहीं डगमगाता है
फिर कभी यूँ ही अकेले में
पुरानी यादोँ के बीच एक आँसू छलक जाता है
दिमाग ही सोचता सिर्फ तो क्या था गम
जाने क्योँ दिल बीच में आ जाता है
कठिन राह पर, भरी धूप में
पाँव के छालों का दर्द भी महसूस न हो पाता है
और कभी तो एक हल्का सा हवा का झोँका ही
अन्दर तक हिला कर छोड़ जाता है
दिमाग ही सोचता सिर्फ तो क्या था गम
जाने क्योँ दिल बीच में आ जाता है
मंदिर की सीड़ी पर वो छोटे बच्चे
हाथ फैलाए, प्रसाद से पेट भरते किसी तरह
"मैं क्योँ सोचूं यह सब, मेरा क्या जाता है"
पर रोज़ वो निश्छल आँखें,
हर वो मासूम चेहरा नज़र आता है
दिमाग ही सोचता सिर्फ तो क्या था गम
जाने क्योँ दिल बीच में आ जाता है
loved it..
ReplyDeleteThank you Avval :) means a lot!
Deletekya baat kya baat!!
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