Mirage

Life ~ Mirage
~ A wasted illusion right from the start.
~ Hopeless romanticism of a hopeful heart.

Though the former is reality, I choose to live by the latter.

Friday, May 31, 2013

अब मैं आज़ाद हूँ



शीशे की दीवारों में
कैद था जाने कब से मन
कोशिश तो की
पर चाह नहीं थी
इन रंग भरी दीवारों को
तोड़ कर बहार आने की

इन नए नए रंगों में रोज़
जग दिखता कितना सुन्दर था
बाहर की बेरंग दुनिया से शायद
कैद भली थी शामियाने की

पर क्या हुआ जाने एक दिन
जो आस जगी अनोखी एक
दम घुटा और हमने फिर
तुड़वा डाला दीवारों को

टूटे शीशों का दर्द हुआ
नाज़ुक कोमल से पावो में
धुंधला गयी डरी सी नज़र
जब अश्क बहे इन आखों से

पर समय बीता
हम आगे बढ़े
कम हुआ दर्द और धुंधलापन
रह गए हम एकदम चकित जब
पाया जग को को और भी रौशन

हुए अचंभित चकाचौंध से
उल्लास भर गया रग रग में
नया है कितना कुछ देखने को
इस बहुप्रदर्शक जगमग जग में

ओ साथी तू भी निकल अब बाहर
क्यों शीशे में कैद, भयभीत है?
आ नाच यहाँ खुले आँगन में
इस नए जग का अजब ही कुछ संगीत है





Tuesday, May 14, 2013

Why I Write


Every time I write, no matter how badly, its like a part of me goes into the piece. Maybe that's why it feels light after penning down sad thoughts and happier after happy ones. 'Pain lessens and joy grows by sharing' they say. This couldn't be truer because every time I re-read these write-ups, it feels like a maturer me is now there to comfort, share and take control of the situation. :)
#Joys-Of-Writing 
#To-Pen-and-Pensive-Moods


Saturday, May 11, 2013

एक मुखौटा मेरा भी



~
धरती थी प्यासी
जी कर आया की ऐसे बरसें बादल
हो जाए तृप्त हर पत्ता पत्ता

आसमान खुला था
बिजली भी चमकी, और हवा भी आई
पर वक़्त आने पर
बादलों ने बरसने से मना कर दिया

अब बादलों ने बरसने से मना कर दिया
तो इस
अतृप्त प्यास को कहाँ से बुझाऊं


~
नाव चली थी छोटी सी मेरी
तूफ़ान से लड़ने
करने सामना हर मुश्किल का

नाव भी थी
सन्नाटा भी आया
पर वक़्त आने पर
तूफ़ान ने आने से मना कर दिया

अब तूफ़ान ने आने से मना कर दिया
तो इस
सन्नाटे में ध्वनि कहाँ से लाऊं


~
उतावले थे पाँव मेरे
घुंघरुओं की ताल पर थिरकने को
ऐसे नाचूं की झूम उठे जग सारा

मन भी था
संगीत भी आया
पर वक़्त आने पर
घुंघरुओं ने छमकने से मना कर दिया

अब घुन्ग्रुओं ने छमकने से मना कर दिया
तो इस
बावरे मन को किस ताल पर नचाऊं


~
रात थी दिवाली की
सैंकड़ों दीयों में एक दिया मेरा भी था
बेचैन था जो  जलने को, अँधेरा उजागर करने को

दिया भी था
दिवाली भी आई
पर वक़्त आने पर
लौ ने जलने से मना कर दिया

अब लौ ने जलने से मना कर दिया
तो इस
दिये में आग कहाँ से लगाऊं


~
अपार प्यास
गहरा सन्नाटा
टूटे घुंघरू
बुझा हुआ दिया
उम्मीद भी है, और हसरत भी
पर तकदीर ने बदलने से मना कर दिया
तो इस
मुख पर हंसी कहाँ से लाऊं