कबसे मन में आशाओं का
समुद्र था एक संजोया हुआ
उड़ कर पल में वो बादल सा
जा बैठा है आँखों के पीछे
बहने दो
अब बहने दो
उड़ गया समुद्र जो बादल बनके
तो बचा है केवल नमक वहाँ
चुभता है पल पल घावों पर
सहने दो
अब सहने दो
समय का खेल, पुरानी बातें
सहमा सा दिल, अधूरी मुलाकातें
कईं शब्दों के बीच कुछ शब्द अनकहे
कहने दो
अब कहने दो
भरी आँखें, दुखते घाव
छलकती हँसी, आस है बाकी
है हाल कुछ ऐसा, तो ऐसा ही
रहने दो
अब रहने दो
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