नयी नयी सी
रंगबिरंगी, कॉलर वाली
कड़क और चमकती हुई
एक बुशर्ट लाये थे हम बाज़ार से
माँ के साथ, नन्हे पावों पर चलकर
घमंड से पहने
बड़ी सी मुस्कान चहरे पर लिए
घूमते थे गली में शान से
और सोचा करते थे
दुनिया बदल देंगे
वो बुशर्ट
कुछ कुछ हमारे
सपनों जैसी थी
तो उसका नाम हमने
उम्मीद रख दिया
आहा! धुलाई के बाद
अलग ही दिखाई देती थी वह
पुराने कपड़ों के बीच
वो रंगबिरंगी, कड़क
बड़े चाव से पहनते थे उसे
रोज़ एक नए जोश के साथ
दिन ब दिन, साल दर साल
पहनते चले गए
अब नजाने कितने साल हो चुके हैं
बेचारी अब नर्म और पुरानी हो गयी है
छेद हो चले हैं उसमें
पर मुलायम मुलायम सी वो
हमें आज भी उतनी ही प्यारी है
सब कहते हैं, "कबाड़ है, फ़ेंक भी दीजिये"
अरे अब आप ही बताईये,
"भला उम्मीद भी कोई फेंकने की चीज़ होती है?"
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